आज के समय में बहुत से लोग बिना किसी साफ वजह के हर समय थकान, कमजोरी और शरीर में ऊर्जा की कमी महसूस करते हैं। कई लोग इसे उम्र, काम का दबाव या नींद की कमी समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन जब यह थकान लंबे समय तक बनी रहती है और आराम करने के बाद भी ठीक नहीं होती, तो इसके पीछे एनीमिया जैसी समस्या हो सकती है। एनीमिया धीरे-धीरे शरीर को अंदर से कमजोर करता है और अगर समय रहते इस पर ध्यान न दिया जाए, तो यह रोज़मर्रा की ज़िंदगी को काफी प्रभावित कर सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एनीमिया एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है, जो खासतौर पर महिलाओं, बच्चों और गर्भवती महिलाओं में अधिक पाई जाती है।
एनीमिया क्या होता है?
एनीमिया वह स्थिति है, जब शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो जाती है या उनमें मौजूद हीमोग्लोबिन सामान्य मात्रा से कम हो जाता है। हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं का एक अहम हिस्सा होता है, जिसका काम फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर शरीर के हर अंग तक पहुंचाना होता है। जब शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पाती, तो अंगों और मांसपेशियों को सही तरह से काम करने में परेशानी होती है। इसी वजह से एनीमिया में व्यक्ति को जल्दी थकान, कमजोरी, चक्कर आना और सांस फूलने जैसी समस्याएं महसूस होती हैं। यह सिर्फ खून की कमी नहीं, बल्कि पूरे शरीर की कार्यक्षमता से जुड़ी समस्या है।
एनीमिया कितना आम है?
एनीमिया दुनिया की सबसे आम स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। यह समस्या हर उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकती है, लेकिन कुछ समूहों में इसका खतरा ज्यादा होता है। छोटे बच्चे, किशोर लड़कियां, मासिक धर्म वाली महिलाएं और गर्भवती व प्रसव के बाद की महिलाएं एनीमिया से ज्यादा प्रभावित होती हैं। WHO के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में 6 से 59 महीने की उम्र के लगभग 40 प्रतिशत बच्चे, 37 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं और 15 से 49 वर्ष की उम्र की लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। ये आंकड़े साफ दिखाते हैं कि एनीमिया सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि समाज से जुड़ी एक बड़ी समस्या है।
एनीमिया के सामान्य लक्षण:
एनीमिया के लक्षण अक्सर धीरे-धीरे दिखाई देते हैं, इसलिए शुरुआत में इन्हें पहचानना मुश्किल हो सकता है। सबसे आम लक्षण लगातार थकान महसूस होना है, चाहे व्यक्ति ज्यादा काम न भी कर रहा हो। शरीर में कमजोरी, हाथ-पैरों में ताकत की कमी और जल्दी सांस फूलना भी आम संकेत हैं। कई लोगों को चक्कर आते हैं, सिरदर्द रहता है और दिल की धड़कन सामान्य से तेज महसूस होती है। त्वचा का रंग पीला पड़ जाना, होंठों और नाखूनों का हल्का सफेद दिखना भी एनीमिया के संकेत हो सकते हैं। गंभीर मामलों में व्यक्ति को ध्यान लगाने में परेशानी और रोज़मर्रा के काम करने में कठिनाई होने लगती है।
एनीमिया होने के मुख्य कारण:
एनीमिया के पीछे कई कारण हो सकते हैं। सबसे आम कारण आयरन की कमी है, क्योंकि आयरन से ही हीमोग्लोबिन बनता है। जब भोजन से पर्याप्त आयरन नहीं मिलता या शरीर उसे ठीक से अवशोषित नहीं कर पाता, तो एनीमिया हो जाता है। इसके अलावा फोलिक एसिड, विटामिन बी12 और विटामिन ए की कमी भी एनीमिया का कारण बन सकती है। बार-बार संक्रमण होना, मलेरिया, परजीवी संक्रमण, टीबी और एचआईवी जैसी बीमारियां भी खून की कमी को बढ़ा सकती हैं। महिलाओं में अत्यधिक मासिक धर्म रक्तस्राव और गर्भावस्था के दौरान पोषण की कमी एनीमिया का बड़ा कारण होती है।
बाद में होने वाला एनीमिया:
कुछ लोगों को एनीमिया जन्म से नहीं होता, बल्कि जीवन के किसी चरण में विकसित होता है। इसे अधिग्रहित एनीमिया कहा जाता है। लंबे समय तक चलने वाली बीमारियां, जैसे किडनी, लिवर या सूजन से जुड़ी समस्याएं, शरीर की खून बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। कई बार शरीर में आयरन मौजूद होता है, लेकिन सूजन या बीमारी के कारण उसका सही उपयोग नहीं हो पाता। इसके परिणामस्वरूप लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण कम हो जाता है और एनीमिया हो जाता है।
जन्म से जुड़ा एनीमिया:
कुछ एनीमिया ऐसे होते हैं, जो माता-पिता से बच्चों में आते हैं। इन्हें आनुवंशिक एनीमिया कहा जाता है। इन मामलों में लाल रक्त कोशिकाओं की बनावट सामान्य नहीं होती या वे जल्दी टूट जाती हैं। ऐसे एनीमिया अक्सर लंबे समय तक चलते हैं और व्यक्ति को जीवन भर सावधानी बरतनी पड़ती है। नियमित जांच और डॉक्टर की सलाह के बिना इनका प्रबंधन मुश्किल हो सकता है।
कम दिखने वाले लेकिन गंभीर प्रकार:
कुछ प्रकार के एनीमिया कम देखने को मिलते हैं, लेकिन ये गंभीर हो सकते हैं। इनमें हड्डियों की मज्जा से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं, जहां शरीर पर्याप्त मात्रा में खून नहीं बना पाता। कुछ मामलों में लाल रक्त कोशिकाएं सामान्य से जल्दी नष्ट हो जाती हैं, जिससे शरीर उनकी भरपाई नहीं कर पाता। इन स्थितियों में सही समय पर जांच और इलाज बहुत जरूरी होता है, क्योंकि ये अन्य गंभीर बीमारियों का संकेत भी हो सकते हैं।
एनीमिया की जांच कैसे होती है?
एनीमिया की पहचान के लिए डॉक्टर सबसे पहले मरीज के लक्षणों और खानपान से जुड़ी जानकारी लेते हैं। इसके बाद खून की जांच करवाई जाती है, जिसमें हीमोग्लोबिन का स्तर और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या देखी जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हीमोग्लोबिन का सामान्य स्तर उम्र, लिंग, गर्भावस्था, ऊंचाई और धूम्रपान की आदत के अनुसार अलग-अलग हो सकता है। सही जांच से ही यह पता चलता है कि एनीमिया है या नहीं और उसका कारण क्या है।
लंबे समय तक एनीमिया रहने के नुकसान
अगर एनीमिया लंबे समय तक बना रहे और उसका इलाज न किया जाए, तो यह शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। दिल को शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जिससे दिल की बीमारी और दिल की धड़कन से जुड़ी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। मस्तिष्क और मांसपेशियों पर भी इसका असर पड़ता है, जिससे व्यक्ति जल्दी थक जाता है और उसकी काम करने की क्षमता कम हो जाती है।
एनीमिया का इलाज
एनीमिया का इलाज उसकी वजह पर निर्भर करता है। अगर कारण आयरन या विटामिन की कमी है, तो डॉक्टर आयरन, फोलिक एसिड या विटामिन बी12 के सप्लीमेंट्स देते हैं। यदि किसी बीमारी की वजह से एनीमिया हुआ है, तो पहले उस बीमारी का इलाज किया जाता है। सही इलाज और नियमित जांच से ज्यादातर मामलों में हीमोग्लोबिन का स्तर धीरे-धीरे सामान्य हो सकता है।
एनीमिया से बचाव कैसे करें?
एनीमिया से बचाव के लिए संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन बहुत जरूरी है। आयरन, विटामिन बी12 और फोलिक एसिड से भरपूर खाना खून बनने की प्रक्रिया को मजबूत करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी सही खानपान, समय-समय पर जांच और महिलाओं व बच्चों में पोषण पर विशेष ध्यान देने की सलाह देता है।
एनीमिया के साथ सामान्य जीवन
सही जानकारी, समय पर जांच और उचित इलाज से एनीमिया होने पर भी व्यक्ति सामान्य और सक्रिय जीवन जी सकता है। जरूरी है कि शरीर के संकेतों को समझा जाए और उन्हें हल्के में न लिया जाए। थोड़ी जागरूकता, सही खानपान और डॉक्टर की सलाह से एनीमिया को लंबे समय तक नियंत्रित रखा जा सकता है।
निष्कर्ष
एनीमिया सिर्फ खून की कमी नहीं, बल्कि शरीर की पूरी ऊर्जा प्रणाली से जुड़ी एक गंभीर समस्या है। जब शरीर तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती, तो थकान, कमजोरी और रोज़मर्रा के कामों में परेशानी होना स्वाभाविक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार महिलाओं, बच्चों और गर्भवती महिलाओं में एनीमिया का खतरा सबसे अधिक होता है, इसलिए इसे हल्के में लेना बिल्कुल भी सही नहीं है। समय पर जांच, सही जानकारी और संतुलित पोषण से एनीमिया को न केवल पहचाना जा सकता है, बल्कि इसे प्रभावी रूप से नियंत्रित भी किया जा सकता है। अगर शरीर लगातार संकेत दे रहा है, तो उसे नजरअंदाज करने के बजाय सही कदम उठाना ही स्वस्थ और सक्रिय जीवन की कुंजी है।
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