सिज़ोफ्रेनिया एक गंभीर लेकिन लंबे समय तक चलने वाली मानसिक बीमारी है। यह बीमारी इंसान की सोच, समझ, भावनाओं और व्यवहार पर गहरा असर डालती है। इस स्थिति में व्यक्ति का दिमाग चीज़ों को सही तरीके से समझ और प्रोसेस नहीं कर पाता। इसी वजह से मरीज को असली दुनिया और उसके मन में चल रही कल्पनाओं के बीच फर्क करना मुश्किल हो जाता है। कई बार वह ऐसी चीज़ें देखने, सुनने या महसूस करने लगता है जो वास्तव में मौजूद नहीं होतीं, लेकिन उसे वे बिल्कुल सच लगती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, सिज़ोफ्रेनिया दुनिया भर में लगभग 23 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है। यानी हर 345 में से 1 व्यक्ति इस बीमारी से जूझ रहा है। वयस्कों में यह आंकड़ा और ज्यादा है, लगभग 233 में से 1 व्यक्ति। यह बीमारी आम तो नहीं है, लेकिन जिन लोगों को होती है, उनके जीवन पर इसका असर बहुत गहरा पड़ता है।
यह समझना बेहद जरूरी है कि सिज़ोफ्रेनिया किसी की कमजोरी, गलत परवरिश या इच्छाशक्ति की कमी की वजह से नहीं होता। यह एक मेडिकल कंडीशन है, ठीक वैसे ही जैसे डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर। सही समय पर इलाज, नियमित दवाइयां, मानसिक थेरेपी और परिवार के सहयोग से मरीज बेहतर और सम्मानजनक जीवन जी सकता है।
सिज़ोफ्रेनिया में दिमाग में क्या बदलाव होते हैं?
सामान्य रूप से हमारा दिमाग सोचने, फैसले लेने, भावनाओं को संभालने और व्यवहार को कंट्रोल करने का काम करता है। लेकिन सिज़ोफ्रेनिया में दिमाग का यह संतुलन बिगड़ जाता है। मरीज की सोच बिखरी-बिखरी हो सकती है। वह एक बात से दूसरी बात पर बिना किसी क्रम के चला जाता है। कई बार उसकी बातें दूसरों को समझ में नहीं आतीं।नभावनाओं पर भी असर पड़ता है। कभी व्यक्ति बहुत कम प्रतिक्रिया देता है और कभी छोटी-सी बात पर बहुत ज्यादा भावुक या गुस्सैल हो जाता है।
कुछ मरीजों को यह भी समझ नहीं आता कि उनके मन में आने वाले विचार बीमारी की वजह से हैं। इसी कारण वे कई बार खुद को बीमार मानने से इंकार कर देते हैं और इलाज से दूरी बना लेते हैं।
सिज़ोफ्रेनिया के प्रमुख लक्षण:
सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन डॉक्टर इन्हें समझाने के लिए आमतौर पर तीन श्रेणियों में बांटते हैं।
1. सकारात्मक लक्षण: सकारात्मक लक्षण वे होते हैं जो सामान्य इंसान में नहीं होते, लेकिन बीमारी की वजह से जुड़ जाते हैं।
- भ्रम (Delusions): इसमें व्यक्ति बिना किसी सबूत के किसी बात पर पक्का विश्वास करने लगता है। जैसे उसे लगने लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुंचाना चाहता है, कोई उसकी जासूसी कर रहा है या कोई उसकी सोच को कंट्रोल कर रहा है। ये विश्वास मरीज को इतने सच्चे लगते हैं कि वह किसी की बात मानने को तैयार नहीं होता।
- मतिभ्रम (Hallucinations): इसमें व्यक्ति ऐसी आवाजें सुनता है, चेहरे देखता है या छूने जैसा महसूस करता है जो असल में मौजूद नहीं होते। WHO के अनुसार, आवाजें सुनना सिज़ोफ्रेनिया का सबसे आम लक्षण है। ये आवाजें मरीज को डराती हैं, डांटती हैं या गलत काम करने का आदेश भी दे सकती हैं।
2. नकारात्मक लक्षण: नकारात्मक लक्षणों में व्यक्ति की सामान्य क्षमताएं धीरे-धीरे कम होने लगती हैं। मरीज कम बोलने लगता है, चेहरे पर भाव नहीं रहते और किसी काम में मन नहीं लगता। उसे लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं आता और वह अकेला रहना चाहता है।
धीरे-धीरे वह अपनी सफाई, कपड़े और रोजमर्रा की जिम्मेदारियों को भी नजरअंदाज करने लगता है। परिवार कई बार इन लक्षणों को आलस या उदासी समझ लेता है, जबकि असल में ये बीमारी के संकेत होते हैं।
3. संज्ञानात्मक लक्षण: संज्ञानात्मक लक्षण सोचने और समझने की क्षमता से जुड़े होते हैं। मरीज को ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है, छोटी‑छोटी बातें याद नहीं रहतीं और निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है। बातचीत के दौरान वह बातों को सही क्रम में नहीं रख पाता, जिससे दूसरों को उसकी बात समझना कठिन हो जाता है। ये लक्षण पढ़ाई, नौकरी और रोजमर्रा के कामों पर गहरा असर डालते हैं और व्यक्ति की कार्यक्षमता को कम कर देते हैं।
सिज़ोफ्रेनिया क्यों होता है?
सिज़ोफ्रेनिया किसी एक कारण से नहीं होता। यह कई कारणों के मिलकर असर डालने से होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार दिमाग में मौजूद कुछ रसायन, जैसे डोपामाइन और ग्लूटामेट, का असंतुलन इस बीमारी में बड़ी भूमिका निभाता है। अगर परिवार में किसी करीबी सदस्य को सिज़ोफ्रेनिया है, तो जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान संक्रमण, कुपोषण, जन्म के समय जटिलताएं, बचपन का गहरा मानसिक आघात, लंबे समय तक तनाव और किशोरावस्था में नशीले पदार्थों का सेवन भी इसके खतरे को बढ़ा सकता है।
WHO के अनुसार, इस बीमारी की शुरुआत अक्सर किशोरावस्था के अंत या 20–30 साल की उम्र में होती है, और पुरुषों में यह महिलाओं की तुलना में थोड़ा पहले शुरू हो जाती है।
सिज़ोफ्रेनिया का निदान कैसे होता है?
सिज़ोफ्रेनिया की पहचान किसी एक ब्लड टेस्ट या स्कैन से नहीं की जा सकती। इसके लिए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ व्यक्ति के व्यवहार, सोच, भावनाओं और लक्षणों का विस्तृत मूल्यांकन करते हैं। डॉक्टर मरीज और उसके परिवार से बातचीत करके यह समझने की कोशिश करते हैं कि लक्षण कब से शुरू हुए, कितने समय से हैं और रोजमर्रा के जीवन को कितना प्रभावित कर रहे हैं।
कई बार MRI या CT स्कैन और खून की जांच इसलिए कराई जाती है ताकि अन्य शारीरिक बीमारियों को बाहर किया जा सके। आमतौर पर सिज़ोफ्रेनिया का पता किशोरावस्था के अंत या युवावस्था की शुरुआत में चलता है।
सिज़ोफ्रेनिया का इलाज और प्रबंधन
हालांकि सिज़ोफ्रेनिया पूरी तरह ठीक नहीं होता, लेकिन सही इलाज से इसके लक्षणों को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। इलाज का मुख्य आधार एंटीसाइकोटिक दवाएं होती हैं, जो दिमाग के रसायनों को संतुलित करती हैं। इसके साथ-साथ काउंसलिंग और कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी मरीज को अपने विचार समझने और तनाव से निपटने में मदद करती है।
WHO के अनुसार, दुर्भाग्य से दुनिया भर में केवल 29% मरीजों को ही विशेषज्ञ मानसिक स्वास्थ्य देखभाल मिल पाती है। यही वजह है कि इलाज और जागरूकता बेहद जरूरी है।
सिज़ोफ्रेनिया की जटिलताएं
WHO के अनुसार, सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित लोग आम लोगों की तुलना में औसतन 9 साल पहले मर जाते हैं, जिसकी वजह दिल की बीमारी, डायबिटीज और संक्रमण जैसी शारीरिक समस्याएं होती हैं।
अगर समय पर इलाज न मिले, तो सिज़ोफ्रेनिया कई गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है। इसके अलावा मरीज अवसाद, चिंता और नशे की लत का शिकार हो सकता है। सामाजिक रिश्ते टूट सकते हैं, पढ़ाई या नौकरी प्रभावित हो सकती है और कुछ मामलों में आत्महत्या का जोखिम भी बढ़ जाता है। इसलिए शुरुआती लक्षणों को पहचानकर तुरंत इलाज शुरू करना बेहद जरूरी है।
सिज़ोफ्रेनिया के साथ जीवन
सिज़ोफ्रेनिया के साथ जीवन मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं। नियमित इलाज, सकारात्मक सोच, परिवार का सहयोग और समाज की समझ से व्यक्ति धीरे‑धीरे स्थिर और संतुलित जीवन की ओर बढ़ सकता है। सही जानकारी और जागरूकता इस बीमारी से जुड़े डर और भ्रम को कम करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाती है।
निष्कर्ष
सिज़ोफ्रेनिया एक गंभीर लेकिन प्रबंधित की जा सकने वाली मानसिक बीमारी है। इसे कमजोरी या पागलपन से जोड़ना गलत है। समय पर पहचान, सही इलाज और निरंतर सहयोग से मरीज न केवल अपने लक्षणों को नियंत्रित कर सकता है, बल्कि एक सम्मानजनक और सक्रिय जीवन भी जी सकता है।
नोट: यह जानकारी सामान्य जागरूकता के लिए है। किसी भी मानसिक समस्या में डॉक्टर या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लेना ज़रूरी है।
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